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टाटा पावर की महिला सशक्तिकरण पहल, सहेलीवर्ल्ड ने नवरात्री में किया महाराष्ट्र की नवदुर्गाओं का सम्मान

आदिशक्ति की पूजा के लिए मनाई जाने वाली नवरात्री में इस बार “नवदुर्गाओं” का शानदार दर्शन कराया गया है। अपने वास्तविक जीवन में जो देवी दुर्गा की तरह ही निडर होकर आगे बढ़ रही हैं ऐसी महाराष्ट्र की नौ महिलाओं के सम्मान के लिए चलायी गयी इस विशेष पहल में टाटा पावर के सहेलीवर्ल्ड ने सहयोग प्रदान किया है।

कला निर्देशक सुमीत पाटिल की संकल्पना और श्रीरंग चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा निर्मित इस अनूठे प्रोजेक्ट में महिला सशक्तिकरण पर जोर दिया गया है। ग्रामीण महाराष्ट्र की इन “दुर्गाओं” की अवाक कर देने वाली कहानियां, उनके कार्य और उनकी सफलताओं को इन नौ छोटे वीडियो की सीरीज ‘#StriPower’ में चित्रित किया गया है।

टाटा पावर की कॉर्पोरेट कम्युनिकेशन्स और सस्टेनेबिलिटी चीफ सुश्री शालिनी सिंग ने इस पहल के बारे में कहा, “इन “देवियों” का कार्य और उनके प्रयास देखकर टाटा पावर सहेलीवर्ल्ड में हम सभी दंग रह गए। किसी भी प्रकार के प्रतिबंधों और सामाजिक कलंक से न ड़रते हुए वह अपना सामाजिक योगदान दे रही हैं। इनमें से हर एक महिला के पास अपने कौशल हैं और समाज के लिए हमें क्या करना है वह उन्होंने निश्चित किया है। समाज को उनके प्रति कृतज्ञ रहना चाहिए।  टाटा पावर की सहेलीवर्ल्ड पहल में ग्रामीण भारत की कई बहुगुणी “दुर्गा” (महिला उद्यमी) एकसाथ आयी हैं। उनके पारंपरिक और सांस्कृतिक जीवन को दर्शाने वाले, हाथों से बनाए हुए उत्पादों के जरिए यह सहेलियां हमें अपनी संस्कृति की जड़ों से जोड़े रखती हैं।”

छोटे वीडियोज् की सीरीज़ में नौ सामान्य फिर भी दृढ़ निश्चय के साथ, प्रेरित होकर आगे बढ़ रही महिलाओं के कार्य और जीवन को हम देख सकते हैं।

·         योगिता तांबे संगीत सिखाती है, नेत्रहीन होते हुए भी पारंपरिक संगीत और प्राकृतिक ध्वनि के माध्यम से अपनी कला को प्रदर्शित करने में वो जरा भी नहीं चुकती। वो 70 पारंपरिक संगीत वाद्यों में प्रवीण है। नेत्रहीन योगिता अपने संगीत के जरिए दूसरों को विश्व का मनोहारी दर्शन कराती है।

·         सुवर्णा वायंगणकर भारत के किले और उनकी सांस्कृतिक धरोहर के संवर्धन का अभियान चला रही है। वह निर्भय होकर महाराष्ट्र की पारंपरिक नौवारी साड़ी पहनकर किलों पर चढ़ती है।

·         माया श्रृंगारे अपने खेत में औषधि पेड़पौधे और सब्जियां उगाती है। इन प्राकृतिक औषधियों का संवर्धन करना उनका लक्ष्य है। गांव के जरूरतमंद लोगों को वह यह औषधियां निःशुल्क भी देती है।

·         श्रद्धा कदम ने अपना जीवन गांव के सामाजिक कल्याण के लिए समर्पित किया है।  कई लावारिस लोगों पर उन्होंने स्वयं अंतिम संस्कार भी किए हैं।

·         रितिका पालकर पत्थरों को अपना कैनवास बनाती है और उन पर भारत की ग्रामीण महिलाओं के जीवन के चित्र बनाती है।

·         इंद्रायणी गावड़े 84 साल की है, सभी उन्हें प्यार से नानी बुलाते हैं।  देवी अन्नपूर्णा का साक्षात् अवतार नानी पत्तों से थालियां और कटोरियां बनाकर, उन्हें बेंचकर अपना पेट पालती है, इतनाही ही नहीं, अपने हाथों से बने स्वादिष्ट, पारंपरिक व्यंजन जरूरतमंदों को भी खिलाती है।

·         आरती आनंद परब महाराष्ट्र के पारंपरिक खेल फुगड़ी के संवर्धन के लिए प्रयासशील है।

·         तनुश्री गंगावणे ने ‘कलसुत्री’ और ‘चित्रकथी’ इन ‘ठाकर’ समाज की परंपराओं का संवर्धन करने में सफलता हासिल की है।  अपनी कला और गुड़ियों का उपयोग वह न केवल मनोरंजन के लिए बल्कि सामाजिक जागरूकता को बढ़ाने के लिए भी करती है।

·         श्रेया बिरजे एक वृद्धाश्रम चलाती है और “मानव सेवा यही ईश्वर सेवा” को मानते हुए स्नेही जीवन के रिश्तों को निभा रही है।

इन छोटे वीडियोज् की सीरीज़ का निर्देशन श्री. सुमीत पाटिल और श्री. किशोर नाईक ने किया है।  दीप्ती भागवत, स्पृहा जोशी, तन्वी पालव, ऋतुजा बागवे, सुरुची आडारकर, पद्मश्री नयना आपटे, अश्विनी कासार, विमल म्हात्रे और चिन्मयी राघवन इन नामचीन मराठी अभिनेत्रियों ने इन कथाओं को मराठी में कथन किया है।


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