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उच्चतम स्तर पर पहुंचा विदेशी मुद्रा भंडार

देश का विदेशी मुद्रा भंडार 21 मई 2021 को समाप्त सप्ताह में 2.865 अरब डॉलर बढ़कर 592.894 अरब डॉलर हो गया जो एक नया रिकॉर्ड है। इसमें स्वर्ण और मुद्रा आस्तियों का प्रमुख योगदान है। रिजर्व बैंक द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार 29 अप्रैल 2021 को समाप्त सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार 590.185 अरब डॉलर के सर्वकालिक उच्च स्तर पर था।

14 मई 2021 को समाप्त पिछले सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार 56.3 करोड़ डॉलर बढ़कर 590.028 अरब डॉलर हो गया था। विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि मुख्य तौर पर विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियां बढ़ने से हुई। रिजर्व बैंक के साप्ताहिक तौर पर जारी आंकड़ों के अनुसार, विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियां सप्ताह के दौरान 1.649 अरब डॉलर बढ़कर 548.519 अरब डालर हो गईं। विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियां डॉलर में व्यक्त की जाती हैं।

इसमें डॉलर के अलावा यूरो, पाउंड और येन में अंकित संपत्तियां भी शामिल हैं। विदेशी मुद्रा परिसंपत्ति सकल विदेशी मुद्रा भंडार का बड़ा हिस्सा हैं। 36.841 अरब डालर हो गया स्वर्ण भंडार पिछले सपताहांत में अपरिवर्तित रहने के बाद आलोच्य सप्ताह के दौरान स्वर्ण भंडार 1.187 अरब डॉलर बढ़कर 36.841 अरब डालर हो गया।

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) में विशेष निकासी अधिकार (एसडीआर) 70 लाख डॉलर बढ़कर 1.513 अरब डॉलर हो गया। वहीं, आईएमएफ के पास देश का आरक्षित भंडार 2.2 करोड़ डॉलर बढ़कर 5.021 अरब डॉलर हो गया।क्या है विदेशी मुद्रा भंडार देश के केंद्रीय बैंकों द्वारा रखी गई धनराशि या अन्य परिसंपत्तियां होती हैं, जिनका उपयोग जरूरत पड़ने पर देनदारियों का भुगतान करने में किया जाता है।

पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार एक स्वस्थ अर्थव्यवस्था के लिए काफी महत्वपूर्ण होता है। यह आयात को समर्थन देने के लिए आर्थिक संकट की स्थिति में अर्थव्यवस्था को बहुत आवश्यक मदद उपलब्ध कराता है। इसमें आईएमएफ में विदेशी मुद्रा असेट्स, स्वर्ण भंडार और अन्य रिजर्व शामिल होते हैं, जिनमें से विदेशी मुद्रा असेट्स सोने के बाद सबसे बड़ा हिस्सा रखते हैं।

साल 1991 में देश को पैसा जुटाने के लिए सोना गिरवी रखना पड़ा था। तब सिर्फ 40 करोड़ डॉलर के लिए भारत को 47 टन सोना इंग्लैंड के पास गिरवी रखना पड़ा था। लेकिन मौजूदा स्तर पर, भारत के पास एक वर्ष से अधिक के आयात को कवर करने के लिए पर्याप्त मुद्रा भंडार है। यानी इससे एक साल से अधिक के आयात खर्च की पूर्ति सरलता से की जा सकती है, जो इसका सबसे बड़ा फायदा है।


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