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केंद्रीय जल शक्ति मंत्री ने राष्ट्रीय जल विज्ञान परियोजना की मध्य अवधि में इसकी प्रगति की समीक्षा की

राष्ट्रीय जल विज्ञान परियोजना (जल शक्ति मंत्रालय की विश्व बैंक समर्थित पहल) की समीक्षा जल शक्ति मंत्री श्री गजेन्द्र सिंह शेखावत और राज्य मंत्री श्री रतन लाल कटारिया द्वारा की गई।

राष्ट्रीय जल विज्ञान परियोजना (एनएचपी) की शुरुआत वर्ष 2016 में केंद्रीय क्षेत्र की योजना के रूप में की गई थी, जिसमें अखिल भारतीय स्तर पर कार्यान्वयन एजेंसियों को 100 प्रतिशत अनुदान दिया गया था, जिसके तहत 8 वर्ष की अवधि में 3680 करोड़ रुपये के बजट परिव्यय के साथ व्यय का प्रावधान किया गया था।

इस परियोजना का उद्देश्य जल संसाधन सूचना की सीमा, विश्वसनीयता और पहुंच में सुधार करना तथा भारत में लक्षित जल संसाधन प्रबंधन संस्थानों की क्षमता को मजबूत बनाना है। इस प्रकार एनएचपी कुशलतापूर्वक विश्वसनीय सूचना के अधिग्रहण की सुविधा प्रदान कर रही है जिससे एक प्रभावी जल संसाधन विकास एवं प्रबंधन का मार्ग प्रशस्त होगा।

इस परियोजना की मध्यावधि के दौरान ही जल संसाधन निगरानी प्रणाली, जल संसाधन सूचना प्रणाली (डब्ल्यूआरआईएस), जल संसाधन संचालन और नियोजन प्रणाली तथा संस्थागत क्षमता वृद्धि के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति हुई है। जल शक्ति मंत्री श्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने बताया कि, एनएचपी के तहत जल संसाधन डेटा का एक राष्ट्रव्यापी भंडार- एनडब्ल्यूआईसी स्थापित किया गया है।

एनएचपी पैन इंडिया के आधार पर रीयल टाइम डेटा अधिग्रहण प्रणाली (आरटीडीएएस) की स्थापना पर ध्यान केंद्रित कर रही है। अब तक, 6500 रीयल टाइम हाइड्रो-मीटीऑरलाजिकल (मौसम विज्ञान-वर्षा मापन और अन्य मौसम मापदंड तथा हाइड्रोलॉजिकल-जल स्तर मापन और निर्वहन) स्टेशनों की स्थापना के लिए अनुबंध प्रदान किए गए हैं, जिनमें से 1900 स्टेशन स्थापित कर लिए गए हैं जो केंद्रीकृत डेटा बेस के लिए जल्द ही डेटा का योगदान देंगे।

वास्तविक समय डेटा अधिग्रहण प्रणाली, वास्तविक समय डेटा अधिग्रहण प्रणाली और मैनुअल डेटा अधिग्रहण स्टेशन एक दूसरे के पूरक होंगे तथा बेहतर जल संसाधन प्रबंधन के लिए सूचित निर्णय लेने के लिए एक मजबूत नींव रखेंगे। ऐसे सभी डेटा वेब सक्षम इंडिया डब्ल्यूआरआईएस के माध्यम से उपलब्ध होंगे जो एनएचपी के तहत अपस्केल किए जा रहे हैं।

इसकी प्रमुख सफलता के रूप में सभी राज्यों को एक ही केंद्रीकृत मंच पर जल संसाधन डेटा के बंटवारे के लिए लाया जा रहा है- जो कि पिछली सरकारों द्वारा अधूरा छोड़ा गया कार्य है। उन्होंने अवगत कराया कि, एनएचपी के माध्यम से, जल संसाधनों का प्रबंधन एक आकस्मिक पूर्ण परिवर्तन लेकर आएगा क्योंकि यह एकीकृत दृष्टिकोण को अपनाएगा तथा अत्याधुनिक तकनीक का उपयोग करेगा।

केंद्रीय मंत्री ने उल्लेख किया कि, एनएचपी के तहत विकसित किए जा रहे विश्लेषणात्मक उपकरण और ज्ञान उत्पाद जैसे कि स्ट्रीमफ्लो फोरकास्टिंग में चार सप्ताह के लंबे लीड टाइम के साथ, बाढ़ की भविष्यवाणी को सटीक बनाने के लिए बाढ़ की मैपिंग, तलछट परिवहन मॉडलिंग, जल संसाधन मूल्यांकन की रूपरेखा, जलाशय अनुकूलन, हिमनद झील एटलस, वेब सक्षम जीआईएस आधारित स्प्रिंग इन्वेंटरी आदि में जल संसाधनों को प्रबंधित करने के तरीके में प्रतिमान बदलाव को स्थापित करने की क्षमता है।

पर्यवेक्षी नियंत्रण और डेटा अधिग्रहण (एससीएडीए) सिस्टम वास्तविक समय के आंकड़ों के आधार पर जल रिलीज प्रक्रिया के स्वचालन के लिए चयनित परियोजनाओं पर स्थापित किए जा रहे हैं। जल शक्ति मंत्री श्री गजेन्द्र सिंह ने अधिकारियों को सार्वजनिक उपक्रम में एनएचपी के तहत किए गए बहुमूल्य कार्यों को साझा करने और इस पहल की दिशा में योगदान करने के लिए विश्व स्तर पर अकादमिक, विश्वविद्यालयों / अनुसंधान संस्थानों को प्रोत्साहित करने के लिए निर्देशित किया। इसके साथ ही उन्होंने विभिन्न हितधारकों की आवश्यकताओं एवं आकांक्षाओं का ध्यान रखने के लिए भारत जल संसाधन सूचना प्रणाली- डब्ल्यूआरआईएस को और अधिक बेहतर बनाने की आवश्यकता पर बल दिया।

जल राज्य मंत्री श्री रतन लाल कटारिया ने एनएचपी को राष्ट्रीय महत्व की परियोजना के रूप में करार दिया, क्योंकि यह सभी राज्यों को जल संसाधनों से संबंधित डेटा का सहयोग करने और साझा करने के लिए इसे एक राष्ट्रव्यापी मुख्य नोडल केंद्र के रूप में स्थापित करता है। उन्होंने कहा कि, अलग – अलग एजेंसियों के डेटा को एकत्रित करने से प्रभावी जल संसाधन प्रबंधन में एक बड़ी अड़चन आती है और साथ ही यह महत्वपूर्ण नीतिगत स्तर के निर्णय लेने में बाधा बन जाती है। डेटा संग्रह में हुई प्रगति को स्वीकार करते हुए उन्होंने बताया कि, एनएचपी की शुरुआत के बाद से, वर्ष 2016 में मात्र 878 की तुलना में जल संसाधन सूचना प्रणाली में 12,273 सतह जल स्टेशनों की मैपिंग की गई है। इसके अलावा 4 साल के भीतर ही 70,525 भूमिगत जल स्टेशनों ने भी डेटा साझा करना शुरू कर दिया है।

पिछली सरकारों के अभाववादी दृष्टिकोण की ओर इशारा करते हुए, उन्होंने कहा कि डेटा एक मूल्यवान संसाधन है और पिछली सरकारों द्वारा इसमें रूचि न लिए जाने के कारण विश्वसनीय ऐतिहासिक डेटा की अनुपलब्धता हुई है। सरकार के साथ-साथ निजी क्षेत्रों और शैक्षणिक तथा अनुसंधान संस्थानों में समय-समय पर स्वाभाविक रूप से कई डेटा-संचालित विकासों का पालन करने की उम्मीद की जाती है, जो देश के जल क्षेत्र से प्राप्त पुराने अनुभव से वर्तमान को बदलने की क्षमता रखते हैं। यह सिस्टम काफी हद तक व्यक्तिगत निर्णय के आधार पर एक अनुकूलित, पारदर्शी प्रणाली पर निर्भर करता है जहां वास्तव में किए जाने से पहले सभी क्षेत्रों में निर्णय के प्रभाव का समग्र रूप से आकलन करना संभव होता है।


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