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ग्रामीण भारत में स्कूली विद्यार्थियों के पास स्मार्ट फोन की संख्या 2018 में 36.5 प्रतिशत की तुलना में 2020 में बढ़कर 61.8 प्रतिशत हुई

प्रतिकात्मक

कोविड-19 महामारी के दौरान बड़े स्तर पर ऑनलाइन शिक्षा प्रदान की गई: आर्थिक समीक्षा 2020-21

केंद्रीय वित्त और कॉरपोरेट कार्य मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने आज संसद में आर्थिक समीक्षा 2020-21 पेश करते हुए कहा कि कोविड-19 महामारी के दौरान व्यापक स्तर पर ऑनलाइन शिक्षा को बढ़ावा मिला है। अक्टूबर, 2020 में प्रकाशित वार्षिक शिक्षा स्थिति रिपोर्ट (एएसईआर)-2020 चरण-1 (ग्रामीण) का उल्‍लेख करते हुए समीक्षा में कहा गया है कि ग्रामीण भारत में सरकारी और प्राइवेट स्कूलों में नामांकित विद्यार्थियों के पास स्मार्ट फोन की संख्या में भारी वृद्धि दर्ज की गई है।

2018 में 36.5 प्रतिशत विद्यार्थियों के पास ही स्मार्ट फोन थे, वहीं 2020 में 61.8 प्रतिशत विद्यार्थियों के पास स्मार्ट फोन मौजूद थे। समीक्षा में सलाह दी गई है कि उचित उपयोग किया गया तो शहरी और ग्रामीण, लैंगिक, उम्र और आय समूहों के बीच डिजिटल भेदभाव और शैक्षिक परिणाम में अंतर समाप्त होगा।

कोविड-19 महामारी के दौरान, बच्चों को शिक्षा प्रदान करने के लिये सरकार ने कई सकारात्मक पहल की हैं। इस दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल पीएम-ईविद्या की शुरुआत है। इससे विद्यार्थियों और अध्यापकों के लिये डिजिटल/ऑनलाइन/ऑन एयर शिक्षा के लिये बहु-आयामी और बराबरी का अवसर प्राप्त होता है।

राष्ट्रीय मुक्त विद्यालय संस्थान – एनआईओएस) से सम्बंधित स्वयं मूक (एमओओसीअएस) के तहत लगभग 92 ऑनलाइन पाठ्यक्रम शुरू किये गये हैं और 1.5 करोड़ विद्यार्थियों ने अपना नामांकन कराया है। कोविड-19 का प्रभाव समाप्त करने के लिये राज्य/केंद्र शासित प्रदेशों को डिजिटल माध्यम से ऑनलाइन शिक्षा प्रदान करने के लिये 818.17 करोड़ रुपये आवंटित किये गये।

समग्र शिक्षा योजना के तहत शिक्षकों को ऑनलाइन अध्यापक प्रशिक्षण प्रदान करने के लिये 267.86 करोड़ रुपये जारी किये गये हैं। कोविड महामारी के कारण स्कूल बंद होने की वजह से विद्यार्थियों को घर पर ही ऑनलाइन शिक्षा प्रदान करने के लिये डिजिटल शिक्षा पर प्रज्ञता (पीआरएअजीवाईएटीए) दिशा निर्देश तैयार किये गये हैं। आत्मनिर्भर भारत अभियान में मनोवैज्ञानिक सहायता के लिये मनोदर्पण पहल शुरू की गई है।

आर्थिक समीक्षा 2020-21 के अनुसार, भारत में अगले दशक तक विश्व में सर्वाधिक युवाओं की जनसंख्या होगी। इसलिये देश का भविष्य तैयार करने के लिये इन युवाओं के लिये उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा प्रदान करने की क्षमता विकसित करना है (राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020)।

यू-डीआईएसई 2018-19 के अनुसार 9.72 लाख सरकारी प्राथमिक विद्यालयों के भौतिक ढांचे में अभूतपूर्व परिवर्तन आया है। इनमें से 90.2 प्रतिशत विद्यालयो में बालिकाओं के लिये शौचालय और 93.7 प्रतिशत विद्यालयों में बालकों के लिये शौचालय की व्यवस्था है। 95.9 प्रतिशत स्‍कूलों में पीने के पानी की सुविधा है।

82.1 प्रतिशत विद्यालयों में पीने, शौचालय और हाथ धोने के लिये पानी उपलब्ध है। 84.2 प्रतिशत स्कूलों में चिकित्सा जांच की सुविधा मौजूद है। 20.7 प्रतिशत स्कूलों में कम्प्यूटर और 67.4 प्रतिशत में बिजली का कनेक्शन और 74.2 प्रतिशत स्कूलों में रैम्प की सुविधा के साथ साथ अन्य सुविधाएं भी उपलब्ध हैं।

समीक्षा के अनुसार, भारत ने प्राथमिक स्कूल स्तर पर 96 प्रतिशत साक्षरता दर हासिल कर ली है। राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण (एनएसएस) के अनुसार, अखिल भारतीय स्तर पर सात वर्ष और उससे अधिक आयु के लोगों में साक्षरता दर 77.7 प्रतिशत है। हिंदू और मुस्लिम वर्ग की महिलाओं सहित अनुसूचित जाति, जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग की महिलाओं की साक्षरता दर राष्ट्रीय औसत से कम है।

सरकारी स्कूलों और संस्थानों में प्रतियोगी तरीके से गुणवत्तापूर्ण और किफायती शिक्षा उपलब्ध कराने के लिये सरकार ने 34 वर्ष पुरानी राष्ट्रीय शिक्षा नीति-1986 की जगह राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 की घोषणा की। नई शिक्षा नीति का उद्देश्य देश में स्कूली और उच्च शिक्षा प्रणाली में बड़े परिवर्तनकारी सुधारों का मार्ग प्रशस्त करना है।

इसका उद्देश्य देश के किसी भी हिस्से में रहने वाले सभी विद्यार्थियों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करना है। ग़रीब और कमज़ोर वर्ग के हाशिये पर मौजूद विद्यार्थियों पर इस में मुख्य ध्यान दिया गया है। 2020-21 के दौरान, स्कूली शिक्षा के लिये योजनाओं और कार्यक्रमों में समग्र शिक्षा, शिक्षकों का क्षमता निर्माण, डिजिटल शिक्षा पर ध्यान देना, विद्यालय के ढांचे को मज़बूती प्रदान करना, बालिका शिक्षा पर ध्यान देना, समावेश पर ध्यान, खेल और शारीरिक शिक्षा और क्षेत्रीय समानता पर ध्यान केंद्रित करना है।


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