भारत, नेपाल के लिए चेतावनी: हिमालय के ग्लेशियर दोगुनी रफ्तार से पिघल रहे है
21वीं सदी की शुरुआत से ही हिमालय के ग्लेशियरों के पिघलने की रफ्तार दोगुनी हो चुकी है। तापमान बढ़ने के कारण ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। सैटेलाइट की पिछले चालीस सालों की तस्वीरों के विश्लेषण से पता चला है कि भारत, चीन, नेपाल और भूटान के मौसमों में हो रहा परिवर्तन हिमालय के ग्लेशियरों को निगल रहा है।
शोधकर्ताओं ने करीब 650 ग्लेशियरों की सैटेलाइट इमेज का बार-बार विश्लेषण किया है। यह पश्चिम से पूर्व की ओर 2000 किलोमीटर क्षेत्र में फैले हुए हैं। वर्ष 1975 से 2000 तक जितनी बर्फ पिघली है उसकी दोगुनी बर्फ वर्ष 2000 से अब तक पिघल चुकी है। हर साल एक वर्टिकल फुट से कुछ अधिक ग्लेशियर पिघल रहे हैं।
वैसे तो यह शोध करीब 18 महीने पुराना है, लेकिन यह रविवार को हुई हिमालयी त्रासदी जैसी प्राकृतिक आपदाओं की भयावह झलक देता है। अमेरिका की कोलंबिया यूनिवर्सिटी के पीएचडी शोधार्थी जोशुआ मॉर्र ने बताया कि जून, 2019 में साइंस एडवांसेज जरनल में प्रकाशित विज्ञान पत्रिका में कहा गया था कि वर्ष 1975 से 2000 का औसत तापमान अब 2000 से 2016 तक एक डिग्री सेल्सियस बढ़ गया था।
भारत समेत पूरे हिमालयी क्षेत्र में गर्मी के कारण हर साल करीब औसतन 0.25 मीटर ग्लेशियर पिघल रहे हैं। जबकि सन् 2000 के बाद से हर साल आधा मीटर ग्लेशियर पिघलते हैं। इसके चलते भारत, चीन, नेपाल और भूटान जैसे देशों के करोड़ों लोगों के लिए पानी तक की किल्लत हो जाएगी।
उन्होंने बताया कि इस अंतराल में हिमालय के ग्लेशियर कितनी तेजी से पिघल रहे हैं, इससे ज्यादा स्पष्टता से इसे बयान नहीं किया जा सकता है। करीब चार दशकों में इन ग्लेशियरों ने अपना एक-चौथाई घनत्व खो दिया है। पतली चादर में तब्दील होते यह ग्लेशियर ग्लोबल वार्मिग के चलते पिघलते और टूटते जा रहे हैं। डाटा के मुताबिक ग्लेशियर बड़े इलाके में और लगातार पिघल रहे हैं। अमेरिकी जासूसी उपग्रहों से मिली वर्गीकृत तस्वीरों को गैरवर्गीकृत घोषित करके एक कड़ी चेतावनी दी गई थी।