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वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर में उमड़े श्रद्धालु

वृंदावन : वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर के कपाट खुल गए हैं. मंदिर के कपाट खुलते ही प्रशासन के दावों के ढोल की पोल भी खुल गई. श्रद्धालुओं की भारी भीड़ को नियंत्रित करने में पुलिस-प्रशासन के पसीने छूट गए. अधिकतर श्रद्धालुओं को यह नहीं पता था कि बिहारीजी के दर्शन के लिए ऑनलाइन पास का सिस्टम बनाया गया है. पास नहीं तो बिहारी जी भी दूर हैं.

मंदिर में दर्शन के लिए प्रशासन ने सुबह श्रृंगार दर्शन से लेकर राजभोग आरती और शाम को उत्थापन दर्शन से लेकर शयन भोग आरती तक की झांकियों की दोनों पालियों के लिए दो-दो सौ भक्तों को ऑनलाइन पास के जरिए मंदिर में प्रवेश की इजाजत दी थी. लेकिन इस मंदिर में  ‘वीआईपी ‘ भी बहुत आते हैं. यहां मथुरा मुंसिफ से लेकर हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट के जज और मंत्री तक पूरे लाव-लश्कर के साथ दर्शन के लिए आते हैं.

दो सौ में से 100 श्रद्धालु तो वीआईपी ही होते हैं, ऐसे में भला आम श्रद्धालु कहां टिकेगा. वीआईपी की अपनी ठसक तो भक्तों की अपनी कसक, यानी दो दिन खूब खींचतान हुई. इन दो दिनों में ये सच भी सामने आया जिस पर या तो प्रशासन का ध्यान नहीं गया या फिर उन्होंने अपनी ठसक के आगे अनदेखा कर दिया. इसके भी अपने कारण हैं.

मंदिरों की नगरी वृंदावन में मंदिर खोलने का निर्णय तो मंदिर प्रबंधन ले सकता है, लेकिन दर्शन और व्यवस्था का नहीं. यह मंदिरों की नगरी है और आने वाली भीड़ सभी मंदिरों में जाती है. इसलिए यहां आने वाले दर्शनार्थियों के दर्शन की व्यवस्था से जुड़े सभी फैसले सिर्फ बिहारीजी मंदिर नहीं ले सकता. ऑनलाइन पंजीकरण व्यवस्था प्रत्येक मंदिर अपनी-अपनी करे, यह भी संभव नहीं है. इसमें मथुरा प्रशासन को सभी मंदिरों और वृंदावन के कारोबारियों के हित को ध्यान में रखते हुए ही उचित निर्णय लेना चाहिए.

वृंदावन का प्रत्येक व्यवसाय यात्रियों से चलता है. ऐसे में सवाल यह भी उठता है कि क्या ऑनलाइन सिस्टम सही विकल्प है? दो सौ से दो हजार तक की अनुमति भी अगर बढ़ा दी गई तो क्या इससे व्यापारियों के या होटलों के व्यवसाय चल पाएंगे? यदि अधिक यात्रियों को अनुमति दी जाती है तो कुंज की गलियों में वैसा ही नजारा दिखेगा, जैसा एक दिन पहले दिखा था.

 


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