एक सदी पुराने डिजिटलाज्ड फिल्म और फोटो की मदद से सनस्पॉट का पता लगाकर सौर परिक्रमा का अध्ययन
सौर चक्रों के अनुमान का मार्ग- कोडाईकनाल सोलर ऑब्जर्वेटरी के डिजिटाइज्ड डाटा द्वारा सदी के दौरान सौर परिक्रमा का अध्ययन
वैज्ञानिकों ने डिजिटाइज्ड पुरानी फिल्मों और फोटोग्राफ्स से हासिल डाटा के द्वारायह अनुमान लगाया है कि पिछली सदी के दौरान सूर्य ने किस तरह परिक्रमा की। इससे सूर्य के भीतरी हिस्से में उत्पन्न होने वाले चुंबकीय क्षेत्र के अध्ययन में मदद मिलेगी जो किसौर धब्बों(सनस्पॉट) के लिए जिम्मेदार है. Way to predicting solar cycles– Kodaikanal Solar Observatory Digitized Data probes Sun’s rotation over the Century
और जिसके परिणामस्वरूप पृथ्वी पर ऐतिहासिक लघु हिमयुग (सौर धब्बों का अभाव) जैसी चरम परिस्थितियां पैदा होती हैं। यह सौर चक्रों और भविष्य में इनमें आने वाले बदलावों का अनुमान लगाने में भी मदद कर सकता है।
ध्रुवों की तुलना में सूर्यभूमध्य पर कहीं तेजी से परिक्रमा करता है। समय के साथ सूर्य की भिन्न परिक्रमा गति उसके चुंबकीय क्षेत्र को उलझा कर और जटिल बना देती हैं। चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं में जटिलता तीव्र स्थानीय चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न कर सकती है। जब सूर्य का चुंबकीय क्षेत्र जटिलता से उलझ जाता है तब उस समय बहुत से सौर धब्बे निर्मित होते हैं। सूर्य की सतह पर 11 वर्ष की अवधि के लिए बनने वाले धब्बे सूर्य के भीतरसौर चुंबकत्व के अध्ययन का एकमात्र उपाय हैंऔर जिससे कि सौर परिक्रमा का आकलन किया जा सकता है।
भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के अंतर्गत स्वायत्त संस्थान आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान के पीएचडी छात्र श्री बिभूति कुमार झा के नेतृत्व में अनुसंधानकर्ताओं के साथ ही मैक्स प्लांक इंस्टीट्यूट फॉर सोलर सिस्टम रिसर्च, गोटिनजेन जर्मनी और साउथवेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट, बॉल्डर, अमेरिका के सहयोगियों ने एक सदी पुराने डिजिटलाज्ड फिल्म और फोटो की मदद से सौर धब्बों (सनस्पॉट) का पता लगाकर सौर परिक्रमा का अध्ययन किया है। पुराने फिल्में औरफोटोग्राफ विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के स्वायत्त संस्थान भारतीय तारा भौतिकी संस्थान केकोडाईकनाल सोलर ऑब्जर्वेटरी से प्राप्तकिए गएऔर उन्हें अब डिजिटाइज कर दिया गया है।
शोधार्थियों नेपरिक्रमा के मानव जनित आंकड़ों की डिजिटाइज्ड डाटा से तुलना की और कहा कि कि वे पहली बार बड़े और छोटे सौर धब्बों (सनस्पॉट)के व्यवहार में अंतर कर पाने में सफल हुए हैं।
इस प्रकार के डिजिटाइज्ड डाटा तथा बड़े और छोटे और धब्बा में अंतर से सौर चुंबकीय क्षेत्र और सौर धब्बों (सनस्पॉट)की समझ विकसित हो सकेगी तथा इससे भविष्य में सौर चक्रों का अनुमान लगाने में मदद मिलेगी।