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हैदराबाद की वैज्ञानिक डॉ. सोनू गांधी को SERB महिला उत्कृष्टता पुरस्कार से सम्मानित किया गया

रोग का पता लगाने के लिए कम लागत वाले स्मार्ट नैनो उपकरणों पर कार्य करने वाली अनुसंधानकर्ता को एसईआरबी महिला उत्‍कृ‍ष्‍टता पुरस्‍कार मिला

राष्‍ट्रीय पशु जैव-प्रौद्योगिकी संस्‍थान (एनआईएबी), हैदराबाद की वैज्ञानिक डॉ. सोनू गांधी को प्रतिष्ठित एसईआरबी महिला उत्कृष्टता पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। उन्होंने हाल ही में रुमेटीइड गठिया (आरए), हृदय रोग (सीवीडी) और जापानी एन्सेफलाइटिस (जेई) का पता लगाने के लिए एक स्मार्ट नैनो-उपकरण विकसित किया है।

विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड (एसईआरबी) द्वारा स्थापित यह पुरस्कार, विज्ञान और इंजीनियरिंग के अग्रणी क्षेत्रों में युवा महिला वैज्ञानिकों की उत्कृष्ट अनुसंधान उपलब्धियों को मान्यता देकर सम्‍मानित करता है।

उनके समूह द्वारा विकसित स्मार्ट नैनो-उपकरण ने एमीन के साथ क्रियाशील ग्रेफीन और विशिष्ट एंटीबॉडी के सम्मिश्रण का उपयोग करके बीमारियों के बायोमार्कर का पता लगाने में मदद की।

विकसित सेंसर से अल्ट्रा-उच्‍च सेंसिटिविटी, ऑपरेशन में आसानी और कम समय में प्रतिक्रिया मिलने जैसे कई महत्वपूर्ण फायदे मिलते हैं,  जिसे पॉइंट-ऑफ-केयर टेस्टिंग के लिए आसानी से एक चिप में रखा जा सकता है। इस विकसित सेंसर ने पारंपरिक तकनीकों की तुलना में  स्पष्ट लाभ दर्शाया तथा यह अत्यधिक संवेदनशील है। वे रोगों का जल्‍द पता लगाकर त्‍वरित और  अधिक प्रभावी एवं कम खर्चीला उपचार सुनिश्चित कर सकते हैं।

उनका अनुसंधान ट्रांसड्यूसर नामक उपकरणों की सतह पर नैनो पदार्थ और जैव-अणुओं के बीच अंतर-क्रिया की प्रणाली की समझ पर आधारित है, जो एक प्रणाली से ऊर्जा प्राप्त करते हैं और बैक्टीरिया और वायरल रोग का पता लगाने, पशु चिकित्सा एवं कृषि अनुप्रयोग, खाद्य विश्लेषण और पर्यावरण निगरानी को लेकर बायोसेंसर की एक नई पीढ़ी के विकास के लिए इसे प्रसारित करते हैं।

डॉ. सोनू की प्रयोगशाला ने फलों और सब्जियों में मुख्य रूप से फफूंद और मिट्टी से पैदा होने वाले कीटों को नियंत्रित करने के लिए उपयोग किए जाने वाले कीटनाशकों का पता लगाने के लिए विद्युत-रसायन के साथ-साथ माइक्रोफ्लुइडिक-आधारित नैनोसेंसर विकसित किया है।

एक समानांतर अध्ययन में, उसकी लैब ने कैंसर के बायोमार्कर की अल्ट्राफास्ट सेंसिंग विकसित की है। यूरोकीनेस प्‍लाजमीनोजेन एक्‍टिवेटर रिसेप्‍टर (यूपीएआर) नामक इस विकसित कैंसर के बायोसेंसर का इस्‍तेमाल एक मात्रात्मक उपकरण के रूप में किया जा सकता है, जिससे यह कैंसर रोगियों में यूपीएआर का पता लगाने में एक विकल्प बन जाता है। यह अनुसंधान ‘बायोसेंसर एंड बायोइलेक्ट्रॉनिक’ जर्नल में प्रकाशित हुआ है।

हाल ही में, उसकी लैब ने दूध और मांस के नमूनों में टॉक्सिन (एफ्लाटॉक्सिन एम 1) का पता लगाने के लिए त्वरित और संवेदनशील माइक्रोफ्लुइडिक उपकरणों का निर्माण किया है, जिन्हें एप्टामर्स कहा जाता है। उन्होंने खाद्य सुरक्षा में गुणात्मक और मात्रात्मक विश्लेषण दोनों के लिए तत्‍काल खाद्य विषाक्त पदार्थों का  पता लगाने के लिए एफ्लाटॉक्सिन बी 1 का शीघ्र पता लगाने को लेकर माइक्रोफ्लुइडिक पेपर डिवाइस विकसित किया है। स्वास्थ्य पहलू के लिए संवेदनशील, किफायती और शीघ्र निदान के लिए सीआरआईएसपीआर-सीएएस13 और क्वांटम डॉट्स आधारित इलेक्ट्रोकेमिकल बायोसेंसर का उपयोग करके साल्मोनेला के बहुविध घटकों का पता लगाना उनकी एक वर्तमान परियोजना का लक्ष्य है।

वे नए किफायती तथा क्षेत्र-प्रयोज्‍य विश्लेषणात्मक उपकरणों को विकसित करने पर ध्यान केंद्रित कर रही हैं, जो रोग का शीघ्र पता लगाने के लिए प्वाइंट ऑफ केयर (पीओसी) डायग्नोस्टिक्स उपलब्‍ध करते हैं, जिससे स्वास्थ्य समस्याओं को हल करने के लिए समय प्रबंधन की सुविधा मिलती है।


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